संघर्षरत लोगों की प्रथम मासिक पत्रिका आदिवासी अध्ययन विभाग, भारतीय सामाजिक संस्थान, नयी दिल्ली द्वारा निरंतर 18 वर्षों से “हाशिये की आवाज़” (उसके पुराने नाम “हम दलित” पिछले 34 वर्षों तक) मासिक पत्रिका प्रकाशित हो रही है। इस पत्रिका के माध्यम से वंचित वर्ग, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक एवं महिलाओं के अधिकारों को लेखन के माध्यम से समाज के सम्मुख लाना इसका एकमात्र उद्देश्य है। hashiyekiaawaz@gmail.com
Saturday, May 25, 2019
Monday, May 20, 2019
Saturday, May 18, 2019
संपादकीय
चुनावी घोषणापत्रों से दूर होते हाशिये का समुदाय
संविधान के अनुच्छेद 1 के
अनुसार “भारत” राज्यों का संघ है। यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक
गणराज्य है। यहां निवास कर रही विभिन्न जाति, वर्ग, समाज की अवाज को केंद्र तक पहुंचाने के लिए क्षेत्रीय दलों
का विकास आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था। पिछले कुछ दशकों के चुनाव पर नजर
डाला जाय तो यह स्पष्ट दिखाई देता है कि क्षेत्रीय दलों को नजरअंदाज कर कोई भी
राष्ट्रीय पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती है। कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय
दलों को चुनौती देते दिखाई देते हैं।
चुनाव आयोग के पास पंजीकृत छोटी बड़ी पार्टियों की संख्या तकरीबन 2300 के करीब है। लेकिन नवीनतम पंजीकृत आंकड़ों को देखा जाए तो
लगभग 2293 राजनीतिक दलों को ही शामिल किया गया है। वर्तमान समय के
पंजीकृत पार्टियों में केवल सात मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी हैं और 59 राज्यस्तरीय पार्टियां हैं।
2019 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में खास है, क्योंकि चुनाव में भाग ले रही सभी राजनीतिक पार्टियों ने
अपना चुनावी घोषणापत्र जनता के सामने जारी किया। लेकिन पांच साल से सत्ता पर काबिज
रही भाजपा सरकार ने चुनावी घोषणापत्र की जगह पर संकल्प पत्र जारी किया है। मुख्य
तौर पर यह देखा गया है कि चुनाव के समय घोषणापत्र के माध्यम से वोटरों को लुभाने
का काम किया जाता है और अपने पक्ष में वोट डालने के लिए जनता को उत्साहित किया
जाता है। राजनीति में क्षेत्रीय पार्टी अपने घोषणापत्र के माध्यम से राज्य की जनता
को अपनी तरफ खींचने का प्रयास करती है, लेकिन कई चुनावों में यह भी देखा गया है कि राष्ट्रीय
राजनीति पार्टी अपने घोषणापत्र के माध्यम से जनता को लुभाने में कामयाब हो जाती
है।
लोकसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों का गहराई से अध्ययन किया
जाय तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस चुनाव में भी रूटीन प्रक्रिया को अपनाया गया
है। वहीं ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या किसी राजनीतिक पार्टी ने दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों को अपने घोषणापत्र में
विशेष तरीके से शामिल किया है?
यह तथ्य इसलिए जरूरी है क्योंकि पिछले पांच सालों में दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ जिस तरह का अत्याचार हुआ
है। उसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। एक तरफ राजनीतिक पार्टी बेहतर समाज और शासन
उपलब्ध कराने की बात करती है। लेकिन जमीनी स्तर पर ठीक इसके उलट किया जाता है।
गुजरात के विकास मॉडल को लेकर 2014 में चुनाव जीतने वाली पार्टी आज देश को किस हालात में
पहुंचा चुका है। यह किसी से छुपा नहीं है। गुजरात के ऊना की धटना ने समाज के उन
तथ्यों को उजागर किया, जिसका उल्लेख वैदिक काल में किया जाता था, जबकि पूरा विश्व 21वीं सदी की चकाचोंध में जी रहा है। बावजूद इसके दलित समाज
के साथ वही व्यवहार किया जा रहा है, जिसकी कल्पना 21वीं सदी में नहीं की जा सकती। किसी राजनीतिक पार्टी ने अपने
घोषणापत्र में यह प्रस्ताव नहीं रखा की दलित समाज के साथ आगे इस तरीके का व्यवहार
नहीं किया जाएगा। यह बिडंबना है कि समाज के दलित वर्ग को ऐसे कार्यों में लगाया
जाता है। ऐसे कार्यों को अन्य देशों में मशीन से किया जाता है।
दूसरी तरफ आदिवासी समाज के बारे में राजनीतिक पार्टी मौन धारण कर लेती है, जैसे देश में आदिवासी निवास ही नहीं करते हैं। उनके उपनामों
को इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन घोषणापत्र में उनके लिए कोई जगह नहीं होती है, जबकि आदिवासी समाज ऐसे इलाकों में निवास करता है, जहां खनिज संपदा के साथ पर्यावरण भी समृद्ध है। आज आदिवासी
समाज के मुद्दे राजनीतिक पार्टी के घोषणापत्रों से गायब हो चुके हैं, उनके जल, जंगल, जमीन को छीना जा रहा है उन्हें अपने ही घरों से विस्थापित
किया जा रहा है। लेकिन राजनीतिक पार्टी उन्हें केवल एक वोट बैंक के रूप में ही
पहचानती है। इस समाज की पहचान को सिर्फ इसलिए गौण नहीं किया जाता है, इसके पीछे एक बड़ी साजिश है। इनके अधिकारों की बात करने
वालों ने भी इस समाज को आज तक धोखा ही दिया है।
क्षेत्रीय पार्टी आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन बचाने की बात अपने भाषणों में करती है, लेकिन घोषणापत्र में इसे शामिल करने से कतराती है। वहीं
अल्पसंख्यक समुदायों के बारे में राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के पास कई
तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत किए गए हैं। बावजूद इसके इन समस्या के समाधान को लेकर
चुनावी घोषणापत्रों में कोई जगह नहीं दी जाती है। ऐसे समुदायों के लिए राजनीतिक
पार्टियों का सीधा उत्तर होता है कि हम इन्हीं समाज के लिए कार्य कर रहे हैं।
राजनीतिक पार्टियों के दोहरे चरित्र को पूरी तरह से समझने की जरूरत है, क्योंकि लोकसभा चुनाव पहली बार नहीं हो रहा है, बल्कि इस चुनाव के बाद जनता को सरकार से यह सवाल पूछना
चाहिए कि इतने सारे तथ्यात्मक रिपोर्ट के बाद भी उनके हितों की रक्षा क्यों नहीं
किया जा रहा है। क्या समाज और देश सिर्फ एक समुदाय और धर्म पर बनाया जा सकता है? विश्व का इतिहास गवाह है कि एक धर्म और समुदाय से बनने वाले
देशों की क्या स्थिति है। लोकसभा चुनाव जीतने वाली पार्टी बेहतर राष्ट्र का
निमार्ण करना चाहती है तो उन्हें वंचित समाज के उत्थान के बारे में सोचना होगा।
इसके ही बाद बेहतर राष्ट्र के सपने को हकीकत में बदला जा सकेगा।
अरुण कुमार उरांव
सहायक सम्पादक, हाशिये की आवाज़
प्रस्तुत हैं जून (June) 2019 का अंक.
इस अंक में
चुनावी घोषणापत्रों
से दूर होते हाशिये का समुदाय (सम्पादकीय)
अरुण कुमार उरांव
चुनाव घोषणापत्रों
और अल्पसंख्यकों के अधिकार
नेहा दाभाड़े
...राजनीतिक परिवेश में स्त्रियों की धूमिल होती छवि
कल्याणी सिंह
गांधी और आरएसएस:
विरोधाभासी राष्ट्रवाद
राम पुनियानी
‘न्याय’ योजना भारत की संवैधानिक जिम्मेदारी
विवेकानन्द माथने
दलित आत्मकथाओं में
मूलभूत आवष्यकताओं के लिए संघर्ष
अजीत कुमार
निश्छल आत्मावलोकन
का प्रयास: टुकड़ा टुकड़ा जीवन
पुनीता जैन
सामाजिक विकास के
क्षेत्र में स्व सहायता समूहों की...
जहाँआरा
हमें बोलना
होगा...: नयन तारा सहगल
हिन्दी अनुवाद: डॉ.
प्रमोद मीणा
अपने-अपने
वेलेंटाइन (कहानी)
डॉ. पूरन सिंह
...आदिवासियों के अधिकार और मीडिया लेखन
अरुण कुमार उरांव
कवियों की
पंक्तियां
भागीरथ सिन्हा, डॉ. राधा वाल्मीकि, जी. पी. वर्मा
price
of Hashiye Ki Awaz is as follows:
सदस्यता शुल्क राशि डी.डी/पोस्टल ऑर्डर/मनीऑर्डर द्वारा
INTEGRATED
SOCIAL INITIATIVE के नाम भेजे
Single
copy: Rs. 20.00
Annual Subscription: Rs. 220.00
Two Year Subscription: Rs. 440.00
Life membership: Rs. 5000.00
Bulk orders (5 copies and more) is supplied at
hefty discounted rates.
Hurry up to get your copy at the earliest!!!
You may send your request to:
INDIAN SOCIAL INSTITUTE
10, Institutional Area,
Lodhi Road, New Delhi. 110 003
Tel: (011) 4953 4000 / 147
E-mail hka@isidelhi.org.in
Subscribe to:
Comments (Atom)
‘हाशिये की आवाज़’, नवम्बर-2023
‘हाशिये की आवाज़’, नवम्बर- 2023 के अंक में आप पढेंगे. इजरायल और फिलिस्तीन युद्ध में मरता मानवीय ढांचा (सम्पादकीय) डॉ. अरुण कुमार उराँव इजर...
-
‘हाशिये की आवाज़’, नवम्बर- 2023 के अंक में आप पढेंगे. इजरायल और फिलिस्तीन युद्ध में मरता मानवीय ढांचा (सम्पादकीय) डॉ. अरुण कुमार उराँव इजर...
-
संघर्षरत लोगों की प्रथम पूर्व समीक्षित मासिक पत्रिका , (PEER-REVIEWED, JOURNAL) " हाशिये की आवाज़" संपादक डॉ. भिनसे...







